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गायत्री परिवार की पहल लाई रंग, इतने जानवरों को बलि चढ़ने से बचाया
अल्मोड़ा । पशुबलि को रोकने का बीड़ा उत्तराखंड के एक गायत्री परिवार ने उठाया है। जिनकी कोशिशों का ही नतीजा है कि आज नवरात्र के अवसर पर उन्होंने बड़ी संख्या में पशुओं को बलि से बचा लिया है। इतना ही नहीं पशु की बलि चढ़ाने आये लोगो को न्याय देवता गोलू के दरबार ले जाकर उनसे माफ़ीनामा भी लिखवाया गया। परिवार ने चितइ मंदिर लगभग 25 पशुओं की जान बचाई है।
इस वजह से दी जाती है बेजुबान पशुओं की बलि
भले ही उच्च न्यायालय ने पशुबलि पर प्रतिबंध लगा दिया है। पर फिर भी लोग आस्था और अंधभक्ति के नाम बलि प्रथा अभी भी कई स्थानों पर जारी है। फिर वो चोरी से हो या रजामंदी से पर बलि प्रथा अभी भी जारी है। उत्तराखंड का गायत्री परिवार काफी समय से इस प्रथा को रोकने के लिए कार्य कर रहा है। वहीं चितइ मंदिर में न्याय देवता का मंदिर भी है । जहां पर हजारों की संख्या में लोगो मन्नत मांगने पहुंचा करते है और मनोकामना पूरी होने पर पशुओं की बलि देने की प्रथा है। हालांकि मंदिर कमेटी पशु बलि को रोकने को लेकर लोगो को जागरूक करने का काम कर रही है। पर फिर भी लोग बलि देते ही है। इस साल बलि रोकने के लिए गायत्री परिवार की एक टीम चितइ मंदिर में मौजूद रही और वहां बलि के लिए आये लोगो को बलि देने से रोका।
गायत्री परिवार ने इतने पशुओं की बचाई जान
नवरात्र के प्रथम दिन तीन लोग पशु बलि के लिए मंदिर पहुंचे, वही तीसरे नवरात्र में छह लोग पशु बलि के लिए मंदिर में पहुंचे थे। इतना ही नहीं इसके बाद हवालबाग, भैसियाछिना, लमगड़ा और नैनीताल के सात लोग पशुओं की बलि चढ़ाने मंदिर में पहुंचे थे। गायत्री परिवार की टीम ने बलि देने पहुंचे लोगों को समझाया तो उन्होंने पशुओं की बलि नहीं दी। उक्त सभी लोगों ने गोलू देवता से लिखित में माफी मांगी और पशुओं को वापस लेकर लौट गए। गायत्री परिवार के भीम सिंह अधिकारी, पूरन सिंह मेहरा, जगजीवन सिंह, हरीश चंद्र तिवारी, चिराग नेगी, मंजु जोशी, निर्मला अधिकारी, नीलम नेगी आदि ने अभियान चलाया।