![कोरोना वैक्सीन](/wp-content/uploads/2021/08/file-20201221-21-25j20e.jpeg)
कोरोना वैक्सीन के बूस्टर डोज को लेकर लखनऊ के विशेषज्ञों ने दी अपनी राय, जानें क्या कहा !
लखनऊ : कोरोना के आये दिन नए वैरिएंट सामने आ रहे हैं। इससे लगभग सभी देश मौजूदा वैक्सीन को मोडिफाई कर बूस्टर डोज बनाने में जुटे हैं। वैक्सीन के असर का देश में भी अध्ययन किया जा रहा है, जिससे पता लग सके कि वैक्सीन की बूस्टर डोज मतलब तीसरी डोज जरूरत पड़ेगी अथवा नहीं। अभी लगभग छह से 10 महीने का वक्त इस स्टडी में लग सकता है।
देशभर में वैक्सीन की दोनों डोज अथवा सिंगल डोज लेकर संक्रमित होने वाले व्यक्तियों तथा पाजिटिव नहीं होने वाले सभी लोगों का ब्यौरा इकट्ठा किया जा रहा है। देश के कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि बूस्टर डोज देने की जरूरत लोगो को पड़ सकती है। कुछ विशेषज्ञों द्वारा इसे खारिज किया जा रहा हैं। वैक्सीन की दोनों डोज ले चुके लोगों में इंडियन काउंसिल फार मेडिकल रिसर्च एंटीबाडी का अध्ययन करा ही है।
लोहिया संस्थान में कोविड प्रभारी डा. पीके दास का कहना हैं कि बूस्टर डोज की जरूरत से भविष्य में इन्कार नहीं किया जा सकता। वैक्सीन से बनने वाले एंटीबाडी हमेशा के लिए नहीं होते। इसकी रिसर्च करना जरूरी है कि बूस्टर डोज की जरूरत पड़ेगी अथवा नहीं।
वैक्सीन की दोनों डोज लेने वालों में हर सप्ताह एंटीबाडी टेस्ट कराया जाता है। इससे पता चलता है कि किस समयावधि तक एंटीबाडी का स्तर स्थिर है और किस समयावधि के बाद स्तर गिर रहा है। उसके बाद तय किया जायेगा कि बूस्टर डोज लगनी है या नहीं।
किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में माइक्रोबायोलाजी प्रोफेसर डा. अमिता जैन का कहना हैं कि, एंटीबाडी बनने को लेकर वैक्सीन लगवाने वाले लोगों का सभी जगह डेटा कलेक्शन हो रहा है, पर जब तक कोई स्टडी का परिणाम इस बारे में सामने नहीं आता, तब तक कहना मुश्किल होगा कि बूस्टर डोज की जरूरत होगी या नहीं।
एसजीपीजीआइ में माइक्रोबायोलाजी विभागाध्यक्ष डा. उज्जवला घोषाल का कहना हैं कि, लोगों में मौजूदा वैक्सीन का असर कितने वक्त तक रह रहा है। इस बारे में अभी कोई अध्ययन नहीं हुआ। लंबे समय तक के लिए कोरोना की चेन ब्रेक नहीं हुई तो बूस्टर डोज की आवश्यकता पड़ भी सकती है।
वैक्सीनेशन अभियान के ब्रांड एंबेसडर डा. सूर्यकांत त्रिपाठी का कहना हैं कि, वैक्सीन दो तरह की इम्युनिटी बनता है। एक एंटीबाडी तथा दूसरी सेलुलर एंटीबाडी। भले ही एंटीबाडी बाद में कम हो जाए, लेकिन सेलुलर एंटीबाडी को पता चल जाता है कि भविष्य में अगर कोरोना संक्रमण हुआ तो उसे क्या करना होगा। बूस्टर डोज की इसलिए जरूरत नहीं पड़नी चाहिए।