![अमरुल्लाह सालेह](/wp-content/uploads/2021/08/saleh-profile.jpg)
अमरुल्लाह सालेह ने तालिबान से लड़ने की भरी हुंकार, खुद को बनाया कार्यवाहक राष्ट्रपति
अफगानिस्तान के ज्यादातर इलाकों पर तालिबान का कब्जा है। बीते रविवार तालिबानी आतंकियों ने काबुल पर भी कब्जा कर लिया। एक ओर जहां अफगानिस्तान के राष्ट्रपति देश को बुरे हालातों में छोड़कर भाग गए है। वहीं उप राष्ट्रपति वहां के लोगों के लिए उम्मीद की किरण बन कर सामने आए हैं। राष्ट्रपति अशरफ गनी की सरकार में अमरुल्लाह सालेह उप राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहे थे।
अब उन्होंने कानून के अनुसार खुद को कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित कर दिया है। आइए जानते हैं इनके बारे में, जिन्होंने खुद की परवाह न करते हुए तालिबान को ललकारा है। भले ही तालिबानी अब सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं। लेकिन अफगानिस्तान में अब भी एक उम्मीद बची हुई है, जो तालिबान से आमने-सामने लड़ाई की बात कर रहे हैं।
सालेह ने ट्वीट कर अपने मन की बात लोगों तक पहुंचाई है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, “मैं मुल्क के भीतर ही हूं और कानूनी तौर पर मै ही पद का दावेदार हूं। अफगानिस्तान का संविधान उन्हें इसकी घोषणा करने की शक्ति देता है। वह सभी नेताओं से संपर्क कर रहे हैं ताकि उनका समर्थन हासिल किया जा सके और सहमति बनाई जा सके।”
खबरों के मुताबिक, तालिबान के कब्जे के बाद सालेह की पहली तस्वीर भी सामने आई है। उन्हें अफगानिस्तान के पंजशीर में देखा गया है। वह अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद और तालिबान विरोधी कमांडरों के साथ बैठक करते हुए देखे गए हैं। अमरुल्लाह सालेह जिस पंजशीर में वहां अभी तक तालिबान कब्जा नहीं कर पाया है।
कौन है अमरुल्लाह सालेह
गनी सरकार में अमरुल्लाह सालेह अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति थे। उन्हें खुले तौर पर पाकिस्तान का विरोधी और भारत का करीबी माना जाता है। अब्दुल रशीद दोस्तम के बाद उन्होंने फरवरी 2020 में उपराष्ट्रपति पद संभाला था। इससे पहले वे 2018 और 2019 में अफगानिस्तान के आंतरिक मामलों के मंत्री और 2004 से 2010 तक राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशालय (एनडीएस) के प्रमुख के रूप अफगानिस्तान को अपनी सेवाएं दे चुके हैं।
1990 में सोवियत समर्थित अफगान सेना में भर्ती से बचने के लिए वह विपक्षी मुजाहिदीन बलों में शामिल हो गए थे। उन्होंने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त किया । मुजाहिदीन कमांडर अहमद शाह मसूद के साछ लड़ाई लड़ी। 1990 के आखिर में वह उत्तरी गठबंधन के सदस्य बने । साथ ही तालिबान के विस्तार के खिलाफ जंग लड़ी। 1996 में भारत से सहायता पाने के लिए भारतीय राजनयिक मुथु कुमार और मुजाहिदीन कमांडर अहमद शाह मसूद के बीच एक बैठक भी करवाई थी।