
दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने अपनी मनमानी की है. उन्होंने दिल्ली में जैसा चाहा वैसा रायता फैलाया. कोरोना की दूसरी लहर के समय दिल्ली में सरकार की व्यवस्था ध्वस्त हुई है. वह जगजाहिर. लेकिन इस बार सुप्रीम कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल को कठघरे में खड़ा कर दिया है.
जानें क्या है मामला
दरअसल, ऑक्सिजन ऑडिट टीम ने हैरान करने वाला खुलासा किया है. सुप्रीम कोर्ट ने इस टीम का गठन किया है. इस टीम ने दावा किया है कि जब पूरे देश में ऑक्सिजन के लिए मारामारी चल रही थी. तब दिल्ली सरकार ने जरूरत से चार गुना अधिक ऑक्सिजन की मांग की थी.
टीम ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि दिल्ली सरकार को जरूरत से ज्यादा ऑक्सिजन आपूर्ति के कारण 12 राज्यों को ऑक्सिजन संकट से जूझना पड़ा होगा.
ऑडिट टीम ने सुप्रीम कोर्ट एक रिपोर्ट दी. इस रिपोर्ट में केजरीवाल सरकार की बड़ी लापरवाही सामने आई है. रिपोर्ट के अनुसार, बेड कपैसिटी के आधार पर तय फॉर्म्युले के मुताबिक दिल्ली को 289 मिट्रिक टन ऑक्सिजन की जरूरत थी. लेकिन दिल्ली सरकार ने 1,140 मिट्रिक टन ऑक्सिनन की खपत का दावा किया था, जो जरूरत से चार करीब गुना है.
दिल्ली सरकार के मुताबिक, 183 अस्पतालों को 1,140 मीट्रिक टन ऑक्सिजन की जरूरत पड़ी थी, जबकि इन्हीं अस्पतालों ने बताया कि उन्हें सिर्फ 209 मीट्रिक टन ऑक्सिजन की जरूरत थी.
सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी फटकार
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने 5 मई को दिल्ली की सरकार को फटकार लगाई थी. केंद्र सरकार को आदेश दिया था कि दिल्ली को 700 मिट्रिक टन ऑक्सिजन की आपूर्ति की जाए. तब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि दिल्ली को 414 मीट्रिक टन ऑक्सिजन की ही जरूरत है.
वहीं पेट्रोलियम ऐंड ऑक्सिजन सेफ्टी ऑर्गनाइजेशन ने सुप्रीम कोर्ट की गठित टीम से कहा कि दिल्ली के पास जरूरत से ज्यादा ऑक्सिजन थी, जिसने दूसरे राज्यों को लिक्विड मेडिकल ऑक्सिजन की सप्लाई प्रभावित की.
इस रिपोर्ट के बाद अरविंद केजरीवाल जनता के निशाने पर हैं. सोशल मीडिया पर लोग केजरीवाल सरकार से सवाल पूछ रहे हैं. ट्विटर पर ‘Delhi Govt’ और ‘Kejriwal’ ट्रेंड करने लगा है.