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नमामि गंगे योजना, क्या है इस योजना की आवश्यकता?

Namami Gange : प्रदूषण की वजह से पूरी दुनिया में प्रकृति को बहुत नुकसान पहुंचा है। जगह जगह कई प्रकार की इंडस्ट्रीज खुलने की वजह से हर प्रकार का प्रदूषण फैल रहा है। यह प्रदूषण ना केवल प्रकृति को बल्कि मनुष्य और जानवरों को भी बहुत हानि पहुंचाता है। एक समय था जब यह वातावरण प्रदूषण मुक्त हुआ करता था। लेकिन अब कई उद्योगों की वजह से और इंसान के स्वार्थी कामों की वजह से आज हमारी दुनिया की यह हालत हो गई है। इसी प्रकार से हमारी गंगा नदी भी जिसे हम लोग माता कह कर संबोधित करते हैं प्राचीन काल से ही भारत देश की विभिन्न संस्कृतियों का भाग रही है।

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Namami Gange

इंसान की स्वार्थी कृत्यों और सही समय पर अच्छा संरक्षण ना मिल पाने की वजह से यह नदी भी दूषित हो गई है। गंगा नदी को एक बार फिर से साफ करने के लिए और उसे प्रदूषण से बचाने के लिए केंद्र सरकार एक और नई योजना लाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा इस योजना की शुरुआत हुई जिसका नाम नमामि गंगे प्रोग्राम है। आज हम आपको इसी योजना के बारे में सारी जानकारी देने जा रहे हैं।

क्या है नमामि गंगे योजना?

गंगा नदी प्राचीन काल से ही भारत की नदियों में से एक रही है। इसी नदी को संरक्षित करने के लिए और इसमें हुए प्रदूषण को साफ करने के लिए इस योजना की शुरुआत की गई। सरल शब्दों में कहा जाए तो गंगा के पुनरुत्थान के लिए नमामि गंगे प्रोग्राम की शुरुआत हुई।गंगा की सफाई और सौन्दर्यकरण के कार्य के लिए यह योजना बनी है।

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नमामि गंगे ( Namami Gange ) योजना की शुरुआत जून 2014 को की गई और नमामि गंगे प्रोग्राम के उत्थान के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय गंगा परिषद का निर्माण किया गया ।केंद्र की योजना के तहत गंगा नदी में मिलने वाले गंदे पानी के श्रोतों को काट कर स्वच्छ जल को ही गंगा नदी में प्रवाहित करने का प्रयास किया जाएगा।

इससे पहले भी सन् 1985 में भी केंद्र सरकार ने ‘गंगा एक्शन प्लान’ बना कर गंगा नदी की सफाई का अभियान चलाया था, मगर तब इतना अधिक बजट का आवंटन नहीं प्राप्त हुआ था।

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क्या है योजना की आवश्यकता?

भारत में सबसे अधिक धार्मिक महत्व वाली नदी गंगा को माना जाता है और यही वजह है शायद इसको गंगा माता की उपाधि दी जाती है। यह नदी भारत के 11 राज्य से बहती है और कई भारत की 40% आबादी को पानी उपलब्ध करवाती है। यह आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा है। टैनरीज, रसायन संयंत्र, कपड़ा मिलों, डिस्टिलरी, बूचड़खानों और अस्पतालों का अपशिष्ट गंगा नदी में सीधे रूप से प्रवाहित होने की वजह से इसे और ज्यादा प्रदूषित कर देती हैं।
सिर्फ यही नहीं गंगा नदी में खुद ही रह कर उसको गंदा करने वाली भी कई लोग हैं।

एक प्रमुख कारण इसके तट पर निवास करने वाले लोगों द्वारा नहाने, कपड़े धोने, सार्वजनिक शौच की तरह उपयोग करने की वजह है । गंगा में 2 करोड़ 90 लाख लीटर प्रदूषित कचरा प्रतिदिन गिरता है। विचार करने वाली बात है कि जिस देश में हम लोग एक नदी को माता की उपाधि देते हैं उसी को इतना गंदा और दूषित करने की क्षमता भी न जाने कहां से लाते हैं। वही गंगा के जल को लोग पवित्र मानते हैं और इसी वजह से इसी ग्रहण भी करते हैं, कई लोग इस में डुबकी भी लगाते हैं। लेकिन इसी वजह से बीमारियों की उपज भी होती है और साथ ही साथ कई विषाक्त चीजों से परिपूर्ण गंगा आज लोगों के लिए विषैली हो गई है। इसी वजह से इस नदी को साफ करने की पहल भी की गई है।

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क्या है उद्देश्य?

इसके कुछ प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं–

  1. गंगा नदी की पूरी तरीके से सफाई करके इसे प्रदूषण मुक्त करना।
    2.गंगा नदी के भीतर जैव विविधता को संरक्षण देना। नमामि गंगे योजना के तहत गंगा के पानी में कई खूबसूरत जीवो को लाना भी इसकी एक योजना है। इसमें जलीय जंतु जैसे मछलियां, डॉल्फिन आदि को संरक्षण दिया जायेगा।
    3.प्रोजेक्ट के द्वारा गंगा के किनारे बसे लोगों के आर्थिक उत्थान का लक्ष्य ।
    4.हरिद्वार और ऋषिकेश समेत उत्तराखंड के सभी प्रमुख शहरों का पानी बिना स्वच्छ हुए गंगा में न बहाया जाए।

योजना की विशेष बातें

  1. नमामि गंगे योजना के लिए ₹20000 करोड़ के बजट का आवंटन किया गया।
    2.केंद्रीय जलसंसाधन मंत्रालय, नदी विकास और गंगा कायाकल्प इससे संबंधित मंत्रालय हैं।
  2. इस योजना की कुल अवधि 18 साल रखी गई है।
    4.नमामि गंगे परियोजना में 2019-2020 में गंगा नदी की सफाई पर 20000 करोड़ रुपए खर्च किए जाने की योजना थी।
    5.इस परियोजना को सफल बनाने के लिए गंगा नदी के किनारे सभी गांव को खुले में शौच से मुक्त करवाने के लिए यहां शौचालय बनवाए गए।इस काम के लिए 578 करोड़ रुपए खर्च किए गए।
    6.परियोजना को सफल बनाने के उद्देश्य से पांच राज्यों- उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में 63 सीवेज परिशोधन संयंत्र बनाए जाने की घोषणा।
  3. नदी की प्राकृतिक सफाई के लिए वनारोपण का कार्य भी नदी के किनारे किया जा रहा है।
    8.सफाई के अलावा 118 शमशान स्थलों की मरम्मत, 151  घाटों का निर्माण और 28 परियोजनाएं शुरू की गई।

कितना हुआ है काम?


गंगा नदी को साफ करने के लिए इस प्रोग्राम की शुरुआत केंद्रीय मंत्रालय ने बहुत ही उत्साह से की थी। धीमे धीमे अब इस प्रोग्राम की गति भी कम होती हुई नजर आ रही है।जल संसाधन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार तो नमामि गंगे प्रोजेक्ट में काफी धीमी गति से काम हुआ है।प्रस्तावित नए 151 घाटों के निर्माण में से महज 36 घाट ही अभी बनकर तैयार हुए है।’नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल’ 2017 की रिपोर्ट के अनुसार गंगा की सफाई के लिए 7304.64 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं पर फिर भी गंगा नदी में बैक्टीरिया 58% से अधिक हो गया है वहीं ऑक्सीजन की मात्रा भी घटती जा रही है।

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यह आंकड़े 2018 के हैं। हाल में न्यूस्ट्रैक की एक खबर के अनुसार नमामि गंगे (Namami Gange) का कार्य अब धनाभाव के कारण धीरे-धीरे ठन्डे बस्ते की ओर बढ़ने लगा है।कार्यों का भुगतान पूर्णतः न हो पाने के कारण ठेकेदार अब काम से पीछे हटने लगे हैं।हाल ही में सोशल मीडिया पर कई ऐसी तस्वीरें सामने आई थी जिसमें गंगे और कई नदियों का स्वच्छ पानी दिखाई दे रहा था जिसके बाद यह साफ हुआ था कि महामारी के चलते लगे हुए लॉकडाउन की वजह से गंगा में दूषित पानी प्रवाहित नहीं हो सका। इसी वजह से गंगा खुद ही साफ हो गई। इन सभी बातों से तो यह साफ होता है कि परेशानी मनुष्य के जीने के तौर-तरीकों में ही है। ऐसा इसलिए क्योंकि मनुष्य की हमेशा से ही आदत नहीं है कि अपना स्वास्थ्य पूरे करने के लिए वह प्रकृति का ध्यान नहीं रखता।

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