
कहीं टीका की न आ जाए अब कमी, स्टाॅक में है 6.70 करोड़ वैक्सीन
देशभर में कोरोना तेजी से बढ़ता जा रहा है। केन्द्र और राज्य सरकारें कोविड टीका लगवाने के नारे को मजबूती देने में लगी हैं, लेकिन दोनों टीकों-कोवैक्सीन व कोवीशील्ड के केवल 6.70 करोड़ डोज ही स्टॉक में हैं। ऐसे में रेमडेसिविर इंजेक्शन, ऑक्सीजन व अन्य दवाओं के बाद अब कोरोना रोधी टीकों की किल्लत न हो जाए।
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टास्कफोर्स प्रमुख ने माना पर्याप्त नहीं है स्टाॅक
कोविड टास्कफोर्स आईसीएमआर के अध्यक्ष डाॅ. नरेंद्र कुमार अरोड़ा खुद कोविड पॉजिटिव हो गए थे। अमर उजाला से विशेष बातचीत में बताया कि हम 1 मई से 18 साल से ऊपर वालों को टीका लगाने जा रहे हैं। हालांकि टीका की उपलब्धता को लेकर डाॅ. अरोड़ा ने स्वीकार किया कि अभी यह पर्याप्त संख्या में नहीं है।

डाॅ. अरोड़ा के मुताबिक इस समय केवल छह करोड़ 70 लाख लोगों को लगाने के लिए ही टीका है। देश में 68 हजार टीकाकरण केन्द्र हैं। 1 मई तक यह संख्या 70 हजार तक हो जाएगी। आज 26 अप्रैल को कुल 28 लाख लोगों को टीका लगाया गया।
जून के पहले उत्पादन बढ़ने की संभावना नहीं
डाॅ. अरोड़ा ने बताया कि जून से पहले टीका उत्पादन की क्षमता बढ़ने के कोई संकेत नहीं है। इसी तरह से रेड्डी लेबोरेटरीज ने स्पूतनिक वी का आर्डर दे दिया है, लेकिन वह भी मई के दूसरे-तीसरे सप्ताह के बाद ही आ पाएगी। विदेश वैक्सीन मिल पाने की संभावना भी कम ही है। ऐसे में यदि टीका लगवाने वालों की संख्या बढ़ी तो दिक्कत होगी। बताते हैं अगस्त से उत्पादन करने वाले भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट दोनों की क्षमता 10.12 करोड़ डोज हर महीने तैयार करने की हो जाएगी।
40.50 लाख लोग रोज टीका लगवाने लगे तो क्या होगा?
अभी जैसे और जितनी संख्या में लोगों को टीका लग रहा है, यही संख्या बनी रही तो मई में काम चल जाएगा। डाॅ. अरोड़ा का कहना है कि किचन से जैसे रोटियां कर आती रहती है और लोग खाते रहते हैं, उसी तरह से नई डोज तैयार होकर आती रहेगी और 28.30 लाख लोगों को रोज लगता रहेगा, लेकिन यदि 40.50 लाख लोग हर रोज टीका लगवाने के लिए आने लगे तो कुछ दिन में ही कोविड का टीका खत्म हो जाएगा।
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बस कच्चा माल आने में गतिरोध न आए
अमेरिका से तैयार करने के लिए आने वाले कच्चे माल की रुकावट दूर हो गई है। डाॅ. अरोड़ा ने बताया कि इसमें थोड़ी रुकावट आ रही थी, लेकिन फिलहाल ऐसा कुछ नहीं है। आगे कोई और समस्या न आए। डाॅ. अरोड़ा ने कहा कि समस्या कच्चे माल की उतनी बड़ी नहीं थी। असल की समस्या आऊटपुट की थी। मेरे विचार में अब आगे इस तरह का गतिरोध नहीं आना चाहिए। टीका निर्माता कंपनियां अपने आऊटपुट पर विशेष ध्यान दे रही हैं।