बिजली गिरने से हुई मौतें गृह मंत्रालय की आपदा अधिसूची में शामिल ही नहीं है।
जब आसमानी बिजली गिरती है
आईएमडी के अनुसार, बिजली का गिरना या आघात एक बड़ा विद्युतीय प्रवाह है जो तूफान के दौरान हवा की गति के बढ़ने और कम होने के कारण उत्पन्न होता है। इस दौरान, पृथ्वी की बाहरी परत पर सकारात्मक चार्ज होता है क्योंकि विपरीत चार्ज आकर्षित करता है, आंधी के बादलों में मौजूद नकारात्मक चार्ज पृथ्वी की बाहरी परत पर मौजूद सकारात्मक चार्ज से जुड़ना चाहता है।
बादल के निचले हिस्से में हवा के दबाव को दूर करने के लिए जब यह बहुत ज्यादा चार्ज हो जाता है तो चार्ज का बहाव पृथ्वी की ओर तेजी से भागता है। इसे “स्टैप्ड लीडर” कहते हैं। पृथ्वी का सकारात्मक चार्ज इस “स्टैप्ड लीडर” की तरफ आकर्षित होता है, और सकारात्मक चार्ज हवा की ओर रुख कर लेता है। जब “स्टैप्ड लीडर” और पृथ्वी से आया सकारात्मक चार्ज आपस में मिलते हैं, एक मजबूत विद्युतीय प्रवाह बादल में सकारात्मक चार्ज उत्पन्न करता है।
इस विद्युतीय प्रवाह को बिजली का “स्टैप्ड लीडर” कहा जाता है जिसे देखा जा सकता है। चूंकि मानव का शरीर विद्युत का अच्छा संवाहक होता है, इसलिए हमारा शरीर आसमानी बिजली के प्रवाह को स्वीकार कर लेता है, जिसे बिजली गिरना कहते हैं।
मानसून के दौरान एक हफ्ते में ही आसमानी बिजली गिरने से देशभर में 150 लोग मारे गए | इनमें सबसे अधिक बिहार में 112, उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश और झारखंड में 10 लोग मरे। मुसीबत यह है कि आम इंसान के साथ सरकारी अधिकारियों का एक बड़ा तबका अब भी इसे दैवीय आपदा मानता है और इसकी रोकथाम के लिए कुछ भी नहीं करता। आम लोगों के साथ सरकारी अधिकारी भी इसे ईश्वरीय कोप मानते हैं।
बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में भारी बारिश और आकाशीय बिजली गिरने से कई लोगों के निधन का दुखद समाचार मिला। राज्य सरकारें तत्परता के साथ राहत कार्यों में जुटी हैं। इस आपदा में जिन लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है, उनके परिजनों के प्रति मैं अपनी संवेदना प्रकट करता हूं।
— Narendra Modi (@narendramodi) June 25, 2020
आकाशीय बिजली से पीड़ितों में से कुछ को ही अधिकृत तौर पर सरकारी मदद मिल पाती है। क्योंकि इस तरह के हादसे को राष्ट्रीय आपदा राहत निधि के अंतर्गत शामिल नहीं किया गया है। हालांकि, पिछले साल चौदहवें वित्तीय आयोग ने राज्य सरकारों को राज्य आपदा राहत निधि के 10 फीसद को अपने राज्यों में विशेष आपदाओं के पीड़ितों को तत्काल राहत देने के लिए इजाजत दी है। यह ध्यान देने की बात है कि आकाशीय बिजली गिरने की घटना गृह मंत्रालय की आपदाओं की अधिसूची में शामिल नहीं है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, भारत में हर साल 2,182 लोग आकाशीय बिजली गिरने के शिकार हो जाते हैं। ब्यूरो के मुताबिक, 2016 में 120, 2014 में भारत में बिजली गिरने से 2,582 जबकि 2013 में 2,833 लोग मारे गए थे।
भारतीय मौसम विभाग के अनुसार पश्चिमी और मध्य भारत में बिजली गिरने का प्रकोप अधिक है। विभाग ने भारत में बारह ऐसे राज्यों की पहचान की है, जहां सबसे अधिक आकाशीय बिजली गिरती है। इनमें मध्य प्रदेश पहले नंबर पर है। इसके बाद महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा का स्थान आता है। वहीं 1967 से 2012 के बीच भारत में प्राकृतिक आपदाओं के कारण हुई मौतों में 39 प्रतिशत मौतों के लिए आकाशीय बिजली जिम्मेदार थी। केरल के तिरुवनंतपुरम स्थित इंस्टीट्यूट आॅफ लैंड एंड डिजास्टर मैनेजमेंट के अनुसार वे अखबार, पंचायत या पुलिस स्टेशन से बिजली गिरने से होने वाली मौतों के बारे में जानकारी हासिल करते हैं। ऐसे में दूर-दराज के गांवों में यह जानना मुश्किल है कि वहां क्या हो रहा है।
अमेरिका ने आकाशीय बिजली से होने वाली मौतों को कम किया है। वहां सरकार ने जागरुकता अभियान चलाया कि लोग तूफान के समय घरों में रहें। अमेरिका में बिजली गिरने से अधिकतर समुद्री तट पर लोगों की मौत होती है जबकि भारत में खेतों में काम करने वाले किसान इसके सबसे ज्यादा शिकार होते हैं।
Over the next 3 days, heavy to very heavy rainfall warning has been given to Assam, Meghalaya, Arunachal Pradesh, Bihar, Sub-Himalayan West Bengal and Sikkim. There are also chances of flooding so we have informed State and the central govt: RK Jenamani, Senior Scientist, IMD pic.twitter.com/dP2BGAzUbI
— ANI (@ANI) June 25, 2020
भुवनेश्वर स्थित पर्यावरणविद विजय मिश्रा ने कहा कि भारत को बांग्लादेश की तरह बिजली के आघात से बचने के लिए ताड़ वृक्षारोपण की योजना बनानी चाहिए। बांग्लादेश में 2016 में 200 से भी ज्यादा मौतें बिजली गिरने की वजह से हुई, जिसमें केवल मई में एक दिन में 82 जानें गई हैं। बांग्लादेश ने बिजली गिरने से होने वाली मौतों को कम करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में ताड़ के वृक्ष लगाने शुरू कर दिए हैं। ओडिशा सरकार एक सलाहकार नियुक्त करने की प्रक्रिया में है, जो बिजली से होने वाली मौतों को कम करने के लिए संभावित उपायों पर सुझाव देंगे।
ओडिशा के साथ ही बिहार सरकार भी आकाशीय बिजली से होनेवाली मौतों पर मंथन कर रही है। नौ जुलाई 2017 को एक ही दिन में बिजली गिरने (स्थानीय भाषा में ठनका कहा जाता है) से 31 लोगों की मौत के बाद बिहार सरकार जागी। ध्यान रहे कि 2016 में ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लाइटनिंग सेंसर के लिए सर्वे का सख्त निर्देश जारी किया था।
मुख्यमंत्री का निर्देश मिले साल भर हो गया, लेकिन इस सेंसर के लिए सर्वे नहीं हो सका जुलाई 2017 तक। इसी कारण लाइटनिंग सेंसर लगाने की फाइल भी ठंडे बस्ते में पड़ी थी। मई से जुलाई के दूसरे हफ्ते तक बिजली गिरने से 171 लोगों की मौत ने सरकार को एक बार फिर चिंता में डाला। अगले ही दिन आपदा प्रबंधन विभाग ने संवाददाता सम्मेलन में बताया कि वज्रपात की भविष्यवाणी के लिए एक मोबाइल ऐप लाया जाएगा।
बिहार में इस तरह की प्रणाली इसलिए भी जरूरी हो गई है क्योंकि बिजली गिरने से मौत के आंकड़ों में लगातार बढ़ोतरी देखी जा रही है। इसी चिंता के कारण ही आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक आदि के आपदा प्रबंधन सलाहकार संजय श्रीवास्तव को बिहार बुलाकर उनसे इस पर विमर्श किया गया। इसी विमर्श के बाद बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग ने लाइटनिंग के खिलाफ अपने अभियान का ब्लू प्रिंट तैयार किया।
झारखंड के आपदा प्रबंधन विभाग ने बिरसा कृषि विवि परिसर में एक सेंसर लगाया, जो 300 किलोमीटर के परिक्षेत्र में आकाशीय बिजली की घटनाओं और उसकी शक्ति का अध्ययन करती है। इसी अध्ययन के बाद नामकुम के सेफ्टी ग्रिड में जर्मन लाइटनिंग अरेस्टर लगाए गए। लंबे समय तक झारखंड के आपदा प्रबंधन विभाग में विशेष परियोजना पदाधिकारी की जिम्मेदारी संभालने के बाद फिलहाल बिहार, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक आदि में आपदा प्रबंधन सलाहकार के रूप में सेवारत संजय श्रीवास्तव कहते हैं कि झारखंड में नामकुम के हालात के कारण बहुत परिवर्तन हुआ।
June 22nd 2020 :: #Flood Update
Severe Flood Situation in #Assam and #Bihar.@CWCOfficial_FF pic.twitter.com/W7l4QvADsl
— NDMA India | राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण 🇮🇳 (@ndmaindia) June 22, 2020
जोखिम कम करना
आकाशीय बिजली के गिरने पर नियंत्रण तो नहीं किया जा सकता है लेकिन केरल के तिरुवनंतपुरम में इंस्टीट्यूट आॅफ लैंड एंड डिजास्टर मैनेजमेंट का सुझाव है कि इस संबंध में हर राज्य सरकारें अपने-अपने राज्यों में कमजोर क्षेत्रों की पहचान कर सकती हैं। अमेरिका या कनाडा की तरह भारत में आकाशीय बिजली की पहचान करने वाला नेटवर्क नहीं है। हालांकि इस बार बिहार सरकार ने बिजली गिरने की घटनाओं से बचाव के उपायों पर जन-जागरुकता को लेकर पहली बार मीडिया में विज्ञापन जारी किए थे। वहीं दूसरी ओर कई विशेषज्ञों ने कहा कि भारत को भी आकाशीय बिजली से होने वाली मौतों को कम करने के लिए बांग्लादेश की रणनीतियों को अपनाना चाहिए। वहां के लोक गीतों, नुक्कड़ नाटकों और कहानियों में आकाशीय बिजली से बचने के उपायों को बताया गया है।