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भारत के ओलंपिक खेलों के 121 साल के इतिहास में अभी तक सिर्फ 28 पदक ही क्यों?

ओलंपिक : विश्व में सबसे ज्यादा आबादी वाले, एक दूसरे के पड़ोसी और क्षेत्रफल की दृष्टि में भी सबसे बड़े दो देश भारत और चीन। पर बात करें ओलंपिक गेम्स की करे तो भारत चीन के मुकाबले पदक लाने में इतना पीछे कैसे है?

 

टोक्यो में खेले जा रहे ओलंपिक खेलों में चीन मेडल जीत कर शीर्ष पांच देशों में अपना नाम दर्ज करा चुका है लेकिन भारत अभी भी उन शीर्ष पांच देशों में अपना नाम नहीं लिखा पाया। भारत की स्थिति बीते वर्ष खेले जा रहे ओलंपिक खेलों जैसी है इस बार भी रही।

 

भारत के ओलंपिक में इस खराब प्रदर्शन की जवाबदेही शायद ही किसी पास होगी की भारत में पदक इतने कम क्यों वह शीर्ष पांच देशों में शामिल क्यों नहीं।

 

इसका एक जवाब ये हो सकता है कि भारत में शायद ही क्रिकेट के सिवा अन्य खेल  किसी को पसंद है। और जिनको अन्य को पसंद भी है वे देश में गिनती के लोगों में ही शामिल है। शायद यही कारण हो सकता है कि किस देश में अभी तक ओलंपिक खेलों में स्थिति इतनी खराब रही है।

 

ओलंपिक 121 सालों के इतिहास में देखा जाए तो भारत में अभी तक मात्र 28 पदक जीते हैं। जिनमें से 9 स्वर्ण पदक 7 रजत और 12 कांस्य पदक  है। इन पदकों में अकेले आठ स्वर्ण पदक हॉकी टीम ने जीते है।

 

भारत में पहली बार पेरिस में खेले जा रहे ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया। जिसमें भारत ने  2 रजत पदक जीते। इसके बाद भारत एम्स्टर्डम ओलंपिक में 1स्वर्ण पदक जीता। 1932 लॉस एंजिलिस ओलंपिक में 1 स्वर्ण पदक जीता। इस तरह भारत ने अलग देशों में खेले हुए ओलंपिक में कुल 28 पदक जीतें।

 

भारत में ओलंपिक में पहुंचने वाला हर खिलाड़ी पदक की चाह रखता होगा बिना पदक की चाह रखे कोई भी खिलाड़ी ओलंपिक में नहीं पहुंच सकता

 

बात करें अगर खेल के मैदानों की तो भारत का हर एक नागरिक यहां तक कि भारत के नेता भी खेल के मैदानों में अपनी तुलना चीन से करते हैं और नाकाम होने पर चीन के अलोकतांत्रिक होने का ठीकरा फोड़  देते है। लेकिन खेल के मैदानों में ऑस्ट्रेलिया अमेरिका ब्रिटेन से बड़ा कोई भी लोकतांत्रिक देश नहीं है।

 

1970 के दो देश जो दोनों ही आर्थिक रुप से गरीब थी। जो आबादी और अर्थव्यवस्था में भी एक जैसे ही थे। लेकिन एक खेलों में कितनी आगे निकल गया और दूसरे ने क्या कमी छोड़ दी। यह कैसे संभव हुआ।

 

शायद चीन में खिलाड़ियों की ट्रेनिंग साइंटिफिक ली और मेडिकल साइंस पर जोर देकर कराई जाती है। जिससे वह हमसे ज्यादा पदक जीतने में सफल रहे।

 

लेकिन भारत में खिलाड़ियों की नाकामी कब पूरा ठीकरा हम खिलाड़ियों को नहीं छोड़ सकते हैं क्योंकि इसमें कहीं ना कहीं उनकी संस्कृति में खेल का ना होना उनके साथ पारिवारिक और सामाजिक भागीदारी का ना होना भी शामिल है। अगर वह गरीब परिवार से हैं उनमें से पहले उनके लिए कोई भी नौकरी जरूरी होती है शायद यही कुछ कारण है जिसके वजह से वह अपने खेल में ध्यान नहीं दे पाते।

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