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जिस कंपनी में मजदूरी कर कमाते थे 15 रुपए आज हैं उसी कंपनी का मालिक

इंसान के सपने जब बड़े होते हैं तो वह उससे पूरा करने के लिए सब कुछ करने को तैयार हो जाता है । जीवन फूलों से सजा एक बिस्तर नही है । जीवन में सबसे ज्यादा यह बात मायने रखती है की हम कठिनाइयों पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं । कुछ लोग ऐसे हैं जो हर मानकर अपने भाग्य को त्याग देते हैं । और फिर कुछ ऐसे भी लोग है जो हर मुश्किल से ऊपर उठाते है और दूसरों के लिए प्रेरणा बन जाते हैं । सुदीप दत्ता भी उन्ही में से एक हैं । जिन्होंने पहले एक सपना देखना और उसे पूरा कर दिखाया । एक छोटे से घर से आए सुदीप दित्ता आज एक बड़ी “Dee Aluminium Pvt. Ltd.” के संस्थापक हैं । यह कंपनी भारत की सबसे बड़ी एल्युमिनियम पन्नी आधारित पैकेजिंग सामग्री की निर्माता हुआ करती थी । 2012 में सुदीप भारत छोड़ सिंगापुर चले गए और वहां अपनी पत्नी तथा दो बच्चों के साथ रहते हैं ।

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प्रारंभिक जीवन
1972 में पश्चिम बंगाल के एक छोटे शहर दुर्गापुर में जन्मे सुदीप दत्ता अपने परिवार के दूसरे बड़े बेटे थे । सुदीप के पिता जी भारतीय सेना में थे और 1971 के इंडो–पाक युद्ध में पैर पर गोली लगने से वे पंगु हो गए थे । पिता जी के बाद तब घर की देखभाल की जिम्मेदारी सुदीप के बड़े भाई पर आ गई थी । कुछ दिनों बाद बड़े भाई की तबियत भी बिगड़ गई और उनका इलाज न हो पाने के कारण उन्होंने दम तोड़ दिया । किंतु बुरे वक्त ने सुदीप का साथ इसके बाद भी नहीं छोड़ा , बड़े बेटे की मृत्यु के बाद उनके पिता जी भी यह सदमा बर्दास्त नही कर पाए और उनका भी देहांत हो गया । और इसी बीच उनके घर की आर्थिक स्थिति भी बिगड़ने लगी थी । अब सुदीप के कंधों पर अपने 4 छोटे भाई बहन की जिम्मेदारी आ गई थी ।

कई लोगों ने उन्हें पैसे कमाने के कई रास्ते बताए जैसे रिक्शा चलाना या रेस्टोरेंट में वेटर की नौकरी करना । लेकिन सुदीप को इन दोनो ही रास्तों पर नहीं जाना था और कुछ अच्छा करना था । 1988 में वह बंगाल छोड़ मुंबई आ गए शायद उन्हें इस बात पर विश्वास था की उनकी किस्मत उनके लिए कुछ अच्छा लिख रही है ।

Dee Aluminium Pvt Ltd की शुरूआत एवं कठिनाइयां

मुंबई पहुंचने के बाद उन्होंने एक कारखाने में मजदूरी कर अपने व्यावसायिक जीवन की शुरुआत की । वहां वह सामानों की पैकिंग , लोडिंग और डिलीवरी का काम करते थे जिसके उन्हें प्रतिदिन के पंद्रह रुपए मिलते थे । उनके साथ और भी 20 मजदूर काम करते थे , कंपनी ने उन सबको सोने के लिए एक छोटा सा कमरा भी दिया था लेकिन वह कमरा 20 लोगों के सोने के लिए इतना छोटा था की सोते वक्त कोई हिल भी नहीं सकता था ।

दो साल तक लगातार उन्होंने ऐसे ही मजदूरी की और एक समय ऐसा आ गया की जिस कंपनी में वह काम करते थे वह घाटे में चली गई थी और उसके मालिक ने उसे बंद करने का फैसला ले लिया था ।
पैसा कमाने के लिए उन्हें फिर से दूसरी जगह नौकरी खोजनी पड़ती । इसलिए उन्होंने कुछ सोच विचार कर कंपनी को खुद से चलाने का फैसला किया और अपने मालिक से उसे बेचने का आग्रह किया ।

दोस्तों से और अपनी खुद की जमा पूंजी से उन्होंने कुल 1,60,000 रुपए इक्कठा किए किंतु वह धन एक कंपनी को खरीदने के लिए पर्याप्त नहीं थे जिसके बाद कम्पनी का भरी नुकसान होने के कारण उनके मालिक ने उनसे एक शर्त रखी की उन्हें  कंपनी के दो साल का पूरा मुनाफा उन्हें देना होगा।

इसके बाद वह कानूनी तौर पर कंपनी के मालिक बन तो गए लेकिन सिर्फ कंपनी का मालिक बनाने से उनकी समस्याएं खत्म नहीं हुई थी । कंपनी को चलाने के लिए उन्हें पैसों की जरूरत थी । दोस्तों से पैसे उधार ले कर उन्होंने काम को किसी तरह शुरू किया लेकिन उनके ऊपर बहुत बड़ा कर्ज का भार भी आ गया था।

एल्युमिनियम पैकेजिंग इंडस्ट्री उस समय बहुत ही कठिन समय से गुजर रही थीं । जिसके बावजूद दो बड़ी कंपनियां “Jindal Ltd” और “India Foil” मजबूती से काम कर बजोरों में टिकी रही । और सुदीप के जैसी छोटी कंपनियों का टिक पाना मुस्किल हो गया था । फिर भी मुश्किलों का सामना कर  सुदीप अपने काम में लगे रहे और उन्हें Sun Pharma , Cipla और Nestlé जैसी बड़ी कंपनियों से भी ऑर्डर मिलने लगे थे । सुदीप की कंपनी का काम अच्छा चल की रहा था की कुछ समय में ही अनिल अग्रवाल अपनी वेदांता जैसी बड़ी कंपनी को लेके पैकेजिंग उद्योग में खड़े हो गए ।

अब सुदीप को दो नही तीन बड़ी कंपनियों का सामना करना था । लेकिन हर मन जाना ही इंसान की सबसे बड़ी बेवकूफी होती है जो सुदीप ने कभी नही की । वह अपने काम ने आड़े रहे और कड़ी मेहनत करना शुरू कर दिया । और अपना उत्पाद को कई गुना बढ़ा दिया जिससे वेदांता को अपना कारोबार सुदीप को बेचना पड़ा और 2008 में सुदीप ने 130 करोड़ रुपए में वेदांता को खरीद लिया था।

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सुदीप के लिए सब कुछ वैसा ही चलने लगा था जैसा कि उन्होंने सोचा था । इसी बीच उन्होंने दवाइयों का उत्पाद करने वाली कंपनियों के बीच मे जान पहचान बनाई और इससे उन्हें बहुत सफलता मिली । 1998 से 2000 के बीच में उन्होंने भारत देश के विभिन्न शहरों मे 12 यूनिट की स्थापना कर दी थी ।
सुदीप को इस बात का पूरा विश्वास है की कुछ सालों मे उनकी “Ess Dee Aluminium” कंपनी का नाम दुनिया के दो सबसे बड़ी पैकेजिंग कंपनियां “Uniliver” और “P&G” के साथ लिया जाएगा ।
आज के समय में इस कंपनी का मूल्य 1600 करोड़ रुपए से अधिक है ।

सुदीप एक अच्छे बिजनेस मैन होने के साथ साथ एक अच्छे इंसान भी हैं । उनकी कंपनी में काम करने वाले सभी कारीगर उन्हें “दादा” कह कर बुलाते है । उन्होंने सामाजिक कार्यों में भी अपन बहुत योगदान दिया है , उन्होंने अपने ही नाम से एक “सुदीप दत्ता फाउंडेशन” की स्थापना की है जो समाज के गरीब बेसहारा लोगों की मदद करता है । मुस्किलें तो हर किसी के जीवन में आती हैं , लेकिन उन मुश्किलों का सामना कर आगे बढ़ने का जुनून ही आपको एक सफल इंसान बना सकता है ।

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