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छात्र-छात्राएं विश्वविद्यालय की महासम्पदा – राज्यपाल

राज्यपाल ने कहा कि देश एवं विदेश के अनेक विद्वानों ने इस विश्वविद्यालय में निष्ठापूर्वक संस्कृत की सेवा की है

लखनऊ: संस्कृत मात्र एक भाषा ही नहीं बल्कि यह भारतीय संस्कृति का मूल आधार है क्योंकि भारतीय सभ्यता की जड़ें इसमें निहित हैं, जो हमारी परम्परा को गतिमान करने का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। ये विचार उत्तर प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल ने आज सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के 39वें दीक्षान्त समारोह को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि संस्कृत अमृत भाषा है जो सभी को अमृत्व प्रदान करती है। इसलिए संस्कृत का ज्ञान संग्रहालय में रखने वाला ज्ञान नहीं होना चाहिए। उन्होंने विद्यार्थियों से अपील की कि विश्वविद्यालय से प्राप्त ज्ञान को अपने भविष्य के जीवन में उपयोग करने के साथ ही देव भाषा संस्कृत के उत्थान और राष्ट्र के विकास में भी समर्पित करें। इस अवसर पर राज्यपाल ने 37 मेधावियों को को 63 पदक एवं 15520 छात्र-छात्राओं को उपाधियां प्रदान की और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की।

राज्यपाल ने कहा कि देश एवं विदेश के अनेक विद्वानों ने इस विश्वविद्यालय में निष्ठापूर्वक संस्कृत की सेवा की है और इसे विश्व में स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि इन विद्वानों ने जो बड़ा आदर्श हमारे सामने प्रस्तुत किया है, उसको निभाने का उत्तरदायित्व और अपनी क्षमता के अनुसार उसे आगे बढ़ाने का संकल्प लें। उन्होंने कहा कि छात्र-छात्राएं विश्वविद्यालय की महासम्पदा हैं। अगर छात्र-छात्राएं समृद्ध होंगे तो विश्वविद्यालय भी समृद्ध होगा। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि वे कभी भी अवांच्छित कर्म और व्यर्थ में समय बर्बाद न करें।
कुलाधिपति ने कहा कि आचार्यों पर ही राष्ट्र निर्माण एवं छात्र-छात्राओं का विकास निर्भर है। इसलिए छात्रगण को आगे बढ़ायें, राष्ट्रहित एवं समाज कल्याण में उन्हें नियोजित करें। अगर एक भी छात्र सफल होता है तो गुरू की सफलता की सिद्धि हो जाती है और आचार्य का जीवन सफल हो जाता है।

राज्यपाल ने बताया कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में संस्कृत भाषा को विशेष स्थान मिला है, इससे संस्कृत की प्रासंगिकता को नई दिशा मिलेगी। इसमें संस्कृत के साथ तीन अन्य भारतीय भाषाओं का विकल्प होगा। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति से आज की युवा पीढ़ी संस्कृत भाषा के अध्ययन-अध्यापन से लाभान्वित होगी। इसके साथ ही संस्कृत भाषा को मजबूती भी मिलेगी।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर हरेराम त्रिपाठी ने बताया कि सन् 1791 में संस्कृत कालेज के रूप में स्थापित यह संस्था 22 मार्च 1958 से वाराणसी संस्कृत विश्वविद्यालय एवं 1973 से सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के रूप में अनेक सोपान पार करते हुये वर्तमान में अपने उद्देश्यों की ओर अग्रसर है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में पुस्तकालय एवं परीक्षा प्रणाली का डिजिटलाइजेशन किया जा रहा है, जिससे विद्यार्थी आनलाइन परीक्षा आवेदन तथा अन्य सुवधायें प्राप्त कर सकेंगे।
राज्यपाल ने कार्यक्रम में श्रीमती मालिनी अवस्थी को डी-लिट की मानद उपाधि से सम्मानित किया तथा प्राथमिक विद्यालय से आये बच्चों को पठन-पाठन सामग्री, बैग और पौष्टिक आहार वितरित किया।

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