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गंगा किनारे बसे शहरों के लिए वरदान साबित होगी PM MODI की ‘अर्थ गंगा मॉडल’ योजना

1991 से स्टॉकहोम अंतर्राष्ट्रीय जल संस्थान वैश्विक जल चिंताओं को दूर करने के लिए हर साल विश्व जल सप्ताह का आयोजन होते आ रहा है।

  • अर्थ गंगा के तहत सरकार छह वर्टिकल पर काम कर रही है
  • प्रधानमंत्री ने ‘नमामि गंगे’ परियोजना नाम दिया था
  • मां गंगा का दर्शन करते हैं 

    देश में लगभग सभी नदियां प्रदूषण का शिकार हो गई। सरकार के लिए देश की सभी नदियों को साफ करना एक चुनौती बन गई है। सरकार की तरफ से नदियों को साफ करने के लिए योजनाएं आती है ताकि नदियों को स्वच्छ किया जा सके लेकिन धरातल पर काम ना के बराबर दिखता है। गंगा नदी की सफाई के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काफी सक्रिय दिखाई देते हैं। इसी के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने शासनकाल में है नमामि गंगे योजना भी लेकर आई थी कई साल बीत जाने के बाद भी गंगा पूरी तरह सच नहीं हो पाई है। वही स्वच्छ गंगा के राष्ट्रीय मिशन के महानिदेशक अशोक कुमार ने बताया कि विश्व जल सप्ताह 2022 में अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि गंगा की सफाई के लिए अब हमारा मॉडल लेकर आ रहे हैं।मोदी की महत्वाकांक्षी योजना

    पीएम मोदी ने पहली बार 2019 में कानपुर में पहली राष्ट्रीय गंगा परिषद की बैठक के दौरान इस अवधारणा को पेश किया था जहां उन्होंने गंगा को साफ करने के लिए केंद्र सरकार की प्रमुख योजनाओं नमामि गंगे से अर्थ गंगा के मॉडल में बदलाव करने की बात कही थी। उत्तरार्ध नदी से संबंधित आर्थिक गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करके गंगा और उसके आसपास के क्षेत्रों के विकसित किया जा सके इसके लोगों को नदी से जोड़ा जा सके ताकि एक आध व्यवस्था बन सके।

    जानें क्या है अर्थ गंगा मॉडल की विशेषताएं…

    अर्ध गंगा के तहत सरकार 6 वर्टिकल पर काम कर रही है पहला सुन बजट प्राकृतिक खेती। जिसमें नदी के दोनों ओर 10 किलोमीटर तक रासायनिक मुक्त खेती और गोवर्धन योजना के माध्यम से गोबर को उर्वरक के रूप में बढ़ावा देना शामिल है। टीचर और अपशिष्ट जल का मुद्रीकरण अपना उपयोग दूसरा। शहरी स्थानीय निकायों के लिए सिंचाई उद्योगों और राज्य सूजन के लिए औपचारिक पानी का पुनः उपयोग करना चाहता है।

    गंगा सफाई में बह गए अरबों रुपए

    आपको बता दें कि गंगा को सच करने के नाम पर शुरुआती दौर में 249 करोड़ पर का बजट रखा गया था जबकि इससे पहले भी 1994 के अंत में इस परियोजना के तह 450 करोड़ पर खर्च किए जा चुके। गंगा कार्य योजना के प्रथम चरण की शुरुआत 14 जनवरी 1986 को हुई थी इसके बाद इसे 31 मार्च 2000 में समाप्त कर दिया था वही गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी के रूप में 2008 में स्वीकृत की गई थी। इस नदी की सफाई के लिए 2000 से लेकर 2010 तक ₹280000000 खर्च कर दिए गए इसके बाद जब 2014 में प्रधानमंत्री मोदी की सरकार बनी तो गंगा सफाई के लिए 63 सौ करोड़ रुपए खर्च करने के लिए निकालें गया जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नमामि गंगे परियोजना का नाम दिया। इतने पैसे खर्च करने के बाद भी गंगा की स्थिति बद से बदतर है ‌

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