
Spiritual
नागेश्वर पंचमी आज, शिव पूजन से मिलती है सभी कष्टों से मुक्ति
महाशिवरात्रि पर्व के पांच दिन बाद इस तिथि को शिव पूजा का विशेष दिन माना जाता है।
हिंदू धर्म में व्रत-उपवास और पूजा-पाठ का विशेष महत्व होता है। शास्त्रों में भी व्रत को विशेष माना गया हैं। शुक्रवार 24 फरवरी को फाल्गुन माह के शुक्लपक्ष की पंचमी मनाई जाएगी। इस तिथि पर भगवान भोलेनाथ के नागेश्वर स्वरूप की आराधना की जाती है। महाशिवरात्रि पर्व के पांच दिन बाद इस तिथि को शिव पूजा का विशेष दिन माना जाता है। इस दिन नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने से हर तरह की परेशानियां दूर होती हैं। मान्यता है कि फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पंचमी पर शिवजी का निवास कैलाश पर होता है। आइए जानते हैं नागेश्वर पंचमी व्रत की पौराणिक कथा और महत्व।
ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर भोलेनाथ ने की भक्त की रक्षा
नाग देवता को पंचमी तिथि का स्वामी माना जाता है। इस तिथि पर भगवान शिव के नागेश्वर रूप की आराधना की जाती है। नागेश्वर का अर्थ होता है नागों के देवता। रुद्र संहिता में शिव के इस ज्योतिर्लिंग की पूजा का महत्व बताया गया हैं। 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में इसे आठवां स्थान प्राप्त हैं। प्रमुख शिव ग्रंथों के मुताबिक ये ज्योतिर्लिंग गुजरात के दारुक वन यानी द्वारिका पुरी में स्थित हैं। वहीं शिव ग्रंथों की कथा के मुताबिक शिव भक्त वैश्य सुप्रिय अपने सारे कार्य शिव भगवान को अर्पित करता था। उसकी शिव भक्ति से दारुक नाम दैत्य क्रोधित होकर सुप्रिय की पूजा-पाठ में रुकावटें पैदा करता था। एक दिन दारुक ने सुप्रिय को कैद कर दिया, मगर उसकी शिव पूजा निरंतर चलती रही।
इस पर दारुक ने सुप्रिय को मृत्यु दंड दिया। भोलेनाथ ने सुप्रिय की रक्षा के लिए कारागार में चमकते हुए सिंहासन पर स्थित होकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए व सुप्रिय को पाशुपतास्त्र प्रदान किया। जिससे सुप्रिय ने दारुक का अंत कर दिया। जहां शिव प्रकट हुए थे वहां अपने आप शिवलिंग बन गया। इसके बाद भोलेनाथ की इच्छा से ही वहां नागेश्वर रूप में उनकी पूजा की जाने लगी। द्वारकाधीश श्रीकृष्ण भी शिव का रुद्राभिषेक करते थे। श्रद्धालु यहां चांदी के नाग-नागिन चढ़ाते हैं। मान्यता है कि यहां शिव पूजन से मन और शरीर जहर मुक्त होता है।