Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ : एक हजार के खर्च में ऐसे खाएं किचन गार्डन में तैयार किया गया मशरूम

बिलासपुर के संकरी निवासी मनोहर लाल राजपूत आजकल लोगों के किचन गार्डन में मशरूम उत्पादन शुरू कराने में व्यस्त हैं। उन्होंने आयरन राड का ऐसा माडल तैयार किया है, जिस पर टंगे तीन बैगों में 21 दिन में दो किलो आयस्टर मशरूम तैयार हो जाता है। वहीं, अब दुधिया मशरूम का उत्पादन कर रहे हैं। कोरोना काल में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन पाने के लिए लोग ताजे मशरूम को प्राथमिकता दे रहे हैं।

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मनोहर लाल ने वर्ष 1996 में इंदिरा गांधी कृषि विवि रायपुर से एमएससी एग्रीकल्चर की पढ़ाई पूरी की थी। अगस्त, 2020 में निजी क्षेत्र में रोजगार मिलना मुश्किल हो रहा था, नौकरी या काम धंधा नहीं होने से बेरोजगारी झेल रहे थे, ऐसे उन्होंने अपने पूर्व अनुभव और ज्ञान का समावेश करते हुए यह माडल तैयार किया, जिसे मात्र एक हजार रुपये में वह लोगों के घरों में स्थापित कर रहे हैं।

उन्होंने अब तक रायपुर, राजनांदगांव, धमतरी, महासमुंद और बिलासपुर में सैकड़ों लोगों के घरों में स्थापित इस माडल की इंदिरा गांधी कृषि विवि के वैज्ञानिकों ने भी सराहना की है तथा किचन गार्डन में पौष्टिकता के समावेश को प्रोत्साहित कर रहे हैं। बता दें कि मशरूम में भरपूर प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिंस, रेशेदार तत्व, खनिज लवण, विटामिन डी समेत अनेक चिकित्सीय तत्व हैं। ताजी मशरूम का इस्तेमाल सलाद, सब्जी, सूप अन्य व्यंजनों में होता है। यह बाजार में 120 रुपये से 200 रुपये प्रति किलो तक मिलता है।

ऐसे बनाया मॉडल, आप भी कर सकते हैं खेती

मनोहर लाल राजपूत बताते हैं कि आयरन राड से पाली बैग रखने के लिए पहले संरचना बनाते हैं। फिर बैग को भरने के लिए या मशरूम की खेती के लिए सबसे पहले मशरूम के फल के टुकड़े किए जाते हैं। इसके बाद केमिकल से रसायनिक प्रक्रिया करके इसे एक प्लेट में डाला जाता है। इसके बाद इस केमिकल में मशरूम के टुकड़े को डालते है। फिर प्लास्टिक की थैलियों में तीन किलो पैरा कुट्टी डालते हैं।

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इसे रातभर पानी में डुबो देते हैं। फिर केमिकलयुक्त पानी व मशरूम के स्पान को इसमें डालते हैं। इसमें गोबर खाद, मिट्टी भी डालते है। इसे बैग में डालकर इसे पालीथीन से ढंक देते हैं और रोज पानी डालते है। धीरे-धीरे इसमें मशरूम उगने लगता है। इस प्रक्रिया को आगे भी करते जाते हैं। पालीथीन के कवर के कारण इसे पर्याप्त नमीं मिलती है। मशरूम व अन्य अवशेष की खाद बनाकर घर के दूसरे पौधों में डाल सकते हैं।

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