सिविल सेवा की कर रहे हैं तैयारी तो पढ़िए आलोक रंजन की ये नई किताब
पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन की किताब ‘मेकिंग ए डिफ्रेंस: द आईएएस एज ए कॅरियर’ का जयपुरिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में हुआ लोकार्पण
लखनऊ: पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन ने भावी आईएएस व वर्तमान नौकरशाहों के लिए ‘मेकिंग ए डिफ्रेंस: द आईएएस एज ए कॅरियर’ नाम से किताब लिखी है, जो अब बाजार में उपलब्ध हो जाएगी। यह किताब सिविल सेवा में आने वाले या कहें आईएएस बनने का सपना संजोए युवाओं को प्रेरणा के साथ-साथ ऊर्जा भी देगी। इस किताब में वर्तमान नौकरशाही के लिए भी बहुत कुछ है।
पेग्विन बुक्स इंडिया द्वारा प्रकाशित किताब ‘मेकिंग ए डिफ्रेंस: द आईएएस एज ए कॅरियर’ का रविवार को जयपुरिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में लोकार्पण किया गया। पुस्तक के विमोचन के अवसर पर कार्यक्रम का संचालन जयंत कृष्णा भूतपूर्व अधिशासी निदेशक टीसीएस और भूतपूर्व प्रबंध निदेशक राष्ट्रीय स्किल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन द्वारा किया गया। जयंत कृष्णा ने आलोक रंजन के साथ अपने सकारात्मक अनुभवों का विश्लेषण किया और कहा कि, आलोक रंजन ने अपने सेवाकाल में एक जनसेवक के रूप में कार्य किया और देश व प्रदेश के विकास में महती भूमिका निभायी। उन्होंने कहा कि, रंजन वास्तविक रूप में एक लोकप्रिय जनसेवक रहे।
इस अवसर पर मौजूद दो सेवानिवृत्त मुख्य सचिव उ.प्र. नवीन चंद्र वाजपेयी एवं अतुल गुप्ता के द्वारा भी आईएएस सेवा एवं आलोक रंजन की कार्यशैली के बारे में अपने विचार रखे। लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अरविन्द मोहन और करियर काउंसलर सुरभि सहाय ने भी नौकरशाह की जनसेवक की भूमिका पर अपने विचार व्यक्त किए।
पुस्तक में हैं कठिन परीक्षा के लिए गुरुमंत्र
इस अवसर पर लेखक आलोक रंजन के कहा कि, एक कुशल प्रशासक को आम जनता के लिए सदैव उपलब्ध रहना चाहिए और उनकी समस्याओं का निराकरण एक सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ करना चाहिए। उनकी यह किताब आईएएस सेवा के अधिकारियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है और उन विद्यार्थियों के लिए अत्यंसत उपयोगी है, जो आईएएस सेवा को अपना कैरियर बनाना चाहते हैं। इस पुस्तक में आलोक रंजन ने आईएएस में आने के उद्देश्य के बारे में अपने विचार रखे हैं और आईएएस जैसी कठिन परीक्षा के लिए गुरुमंत्र भी दिया है, जो कि विद्यार्थियों के लिए अत्यंकत उपयोगी होंगे।
आलोक रंजन ने जिला प्रशासन, प्रदेश सरकार व भारत सरकार सभी स्तर पर एक आईएएस अधिकारी को कैसे चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और वह किसी प्रकार समाज में अपना योगदान दे सकते हैं, का उल्लेख किया है। भारतीय नौकरशाही की अंदरूनी पड़ताल करती ‘मेकिंग ए डिफ्रेंस: द आईएएस एज ए कॅरियर’ किताब में और भी बहुत कुछ है, जो सिविल सेवा में आने वाले युवाओं को नई राह दिखाएगा।
38 साल के सेवाकाल के अनुभवों का निचोड़ शामिल
पुस्तक के विषय में बताते हुए पूर्व मुख्यो सचिव आलोक रंजन ने बताया कि, यह किताब उनकी आत्मकथा नहीं है, लेकिन उनके 38 साल के लंबे सेवाकाल के प्रशासनिक अनुभवों का निचोड़ है। उन्होंने अपने प्रशासनिक अनुभवों के आधार पर कुशल नेतृत्व और सुप्रशासन के मंत्र पाठक के सामने रखे हैं। उनका कहना है कि आईएएस सेवा का सच्चा उद्देश्य समाज में बदलाव लाना है और एक आईएएस अधिकारी को निरंतर यह प्रयास करना चाहिए कि किस प्रकार वह शोषित, गरीब व पिछड़े वर्ग को सेवा सुनिश्चित करता है और उनको गरीबी स्तर से ऊपर लाने का प्रयास करता है। नौकरशाह के सामने काफी चुनौतियां रहती हैं और विशेष रूप से राजनेतिक हस्तक्षेप के कारण उनकी प्रतिभा पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाती।
लेखक आलोक रंजन का मानना है कि आईएएस सेवा में अधिकारी को केवल अच्छी तैनाती के पीछे नहीं भागना चाहिए, क्योंकि आईएएस सेवा का प्रत्येक पद ऐसा है, जिसमें यदि लगन, निष्ठा और ईमानदारी से काम किया जाय तो समाज के हर व्यक्ति के जीवन स्तर को उठाया जा सकता है। पुस्तक के विषय में बताते हुए उन्होंयने अपने सेवाकाल में कराए गए कार्यों का जिक्र करते हुए कहा कि, मैंने अपने सेवा काल में कई कार्य कराए जैसे- मेट्रो रेल का आरम्भ, इकाना स्टेडियम की स्थापना, एंबुलेंस सेवा, डॉयल-100 की सेवा, प्रदेश में मेडिकल कॉलेजों का निर्माण आदि में 308 किलोमीटर लंबे आगरा एक्सप्रेस-वे का निर्माण 23-24 महीनों में करा देना, मुझे सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण और सन्तोषप्रद लगा।
जनमानस में छोड़नी चाहिए अपनी छाप
लेखक का मानना है कि आईएएस सेवा के अधिकारियों को अपनी ईमानदारी, कार्य कुशलता और जनसमर्पण की भावना से जनमानस में अपनी छाप छोड़नी चाहिए। अपनी सेवा में यह पूरा प्रयास करना चाहिए कि नागरिकों के लिए सुलभ रूप से उपलब्ध रहें और उनकी समस्याओं का निराकरण सुनिश्चित कराएं। सेवा काल में यह प्रयास होना चाहिए कि समाज के हर नागरिक को जीवनयापन की बेहतर सुविधा उपलब्ध हो सकें। इस कार्यक्रम में भूतपूर्व एवं वर्तमान आईएएस अधिकारी, लेखक, पत्रकार एवं सभी बुद्धजीवी वर्ग ने प्रतिभाग किया एवं पुस्तक के विषय में अपने विचार व्यक्त किए।