मानव को कर घरो में क़ैद , प्रकृति ने ओढी अपनी सबसे रंगीन चुनरिया
मनुष्य जहाँ गत वर्षो से अपने संसाधनों के विकास में लगा रहा वहीँ पर्यावरण क विनाश का स्त्रोत भी बनता रहा! लगातार बढ़ते प्रदुषण के कारन फूलों की संरचनाए उनके खिलाव में बदलाव आया
फूलों कीं प्रजातियों की संख्या में भी गिरावट महसूस की गयी |
प्राकृतिक रूप से फूलों के आकार व साइज में भी फ़र्क़ महसूस किया जा सकता है | यदि कहीं फूलों का आकार बढ़ा है तो वो भी यूरिया व केमिकल के इस्तेमाल से है
मगर अचानक ही पिछले दो महीनो से काल चक्र जैसे रूक गया है|
प्रकृति अपने कल्याण में लग गयी हो कोरोना वायरस के कारण सक्रमण को फैलने से रोकने के लिए हुए lockdown ने मानव को अपने घरो में कैद कर दिया है, हर चीज़ सिमट गयी और धरती अम्बर को मानो पंख खोलने का मौका मिल गया!
15-20 वर्ष पूर्व dehliaफूल का व्यास कुदरती रूप से खिलने पर ;केवल एक फूल खिलाने पर 18 इंच तक होता था जो बीतते वक़्त के साथ साथ साथ काफी काम होता चला गया |
यही से शुरू हुआ दौर सिंथेटिक fertilizers और chemicalsके उपयोग का | फूलों पर यूरिया, NPK , DAP , Auxins , abscicic acid , जैसे रसायनो का छिड़काव होने लगा जिससे उनकी प्राकृतिक संरचना बदलने लगी, उनके खिलाव की समयवध्नि भी बदल गयी|
बरेली के प्रेमनगर में स्थित एक कोठी जिसे सभी फूलों वाली कोठी के रूप में जानते और पहचानते है , उसके मालिक रजत खंडेलवाल पिछले 35 वर्षो से बड़ी लगन से बागवानी करते आ रहे है और लगभग गत 28 वर्षो से सर्वश्रेष्ठ गार्डन लॉन व बंगले का पुरूस्कार जीतते आ रहे है!
इस समय मेरी आँखों ने प्रकृति का अविश्वसनीय व तुलनात्मक परिवर्तन देखा है
फूलों वाली कोठी मानो फूलों की घाटी का एहसास करा रही है!
बगीचे में मुख्या भवन के दोनों तरफ bogainvilla के पेड़ है जो पूरी बिल्डिंग को अपने फूलों से ढके रहते है
शुरुवाती मार्च में वे सबसे ज्यादा खिलते है मगर इस बार उनका खिलाव लगभग दोगुना हुआ है व एक महीने बाद भी वे उतने ही खिलाव पर बरक़रार है!
अमूमन इस पेड़ के फूल मार्च मध्य तक काफी कम हो जाते थे,मगर इस बार इनकी चमक और खिलाव बहुत सुन्दर है जोकि पिछले तीस वर्षो में नहीं देखी गयी|
उसी प्रकार से काफी कम वायु प्रदुषण की वजह से फूलों की प्रजातियां जो मध्य मार्च तक पुरतः खिल कर समाप्त हो जाती थी वो अभी भी अपने शिखर पर है जैसे clianthus , freesha, mimulus, ranaculus, brachycome, carnation.
आगे बताते हुए उन्होंने कहा की डेहलिया के अमूमन जितने फूल आते थे अबकी बार चार गुना फूल आये है जिस कारन डेहलिया के पेड़ को सेठो ( लकड़िया) का सहारा लगा कर फूलों को बांधा जा रहा है क्युकी इतने सारे फूलों का वजन डेहलिया का पेड़ सह नहीं पा रहा है|
उसी प्रकार गुलाब भी बहुत अच्छी मात्रा में खिल रहा है!
रजत का कहना है के गाठ दस वर्षो से तो कोयल उनके बगीचे में आयी ही नहीं परन्तु अब रोज़ भोर में कोयल की कूक से ही
आँख खुलती है! सुबह का नज़ारा बिलकुल दिव्य दर्शन सा होता है! कोयल की कूक , गौरईया , red breasted बर्ड, ग्रे हेडेड कैनरी व और कई प्रजातियों की चिड़िया नज़र आती है,साथ ही फूलों के ऊपर रंग बिरंगी तितलियों का समूह भी बहुत मनमोहक होता है जो पिछले कई वर्षो से बिलकुल गायब थी!
प्रेमनगर क्षेत्र की ही बात करें तो मौजूदा एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI O3) 28 !1 ug /m3 जोकि अक्टूबर महीने में 470 था!
राजेश अग्रवाल , जाने माने स्कूल प्रबंधक जो की गत कई वर्षो से वार्षिक गुलदाउदी प्रदर्शनी भी शहर में आयोजित करते आ रहे है का कहना है कि जो हरी भरी खूबसूरती इस बार हमारे विद्यालय प्रांगण व फार्महाउस में है वो पहले से कही ज्यादा है |
जहाँ एक तरफ अप्रत्याशित कम प्रदुषण के कारण फूलों की समयावधि बढ़ी है वही फूलों की कई प्रजातियां अपने समय से पूर्व खिल रही है |
सेलम व मैगनोलिया जैसे फूल जहाँ अप्रैल के अंत तक खिलते थे वो अप्रैल माह के शुरू होते ही खिलने लगे |
वायु प्रदूषण न होने से शहर का वातावरण बिल्कुल साफ हो गया। इतना साफ़ कि लोगो ने छतो से अपने मोबाइल में कैप्चर किये है नैनीताल की खूबसूरत पहाड़ियों के मनोरम दृश्य को
इस समय में हमारी अर्थ व्यवस्था को गहरा आघात लगा है मगर पृथ्वी सेल्फ रेनोवेशन मोड में आ गयी है! जिससे पर्यावरण को बहुत लाभ हो रहा है |
उत्तराखंड नैनीताल में बसे अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पर्यावरणविद अजय रावत जी कहते है के इस lockdown ने पृथ्वी को मौका दिया है अपने पुनर्जन्म का|
एक ओर प्रदूषण का स्तर सबसे कम है तो वहीं आसमान भी साफ दिखाई दे रहा है। यातायात व फैक्टरियां बंद होने से प्रकृति और पर्यावरण को बहुत फायदा पहुंचा है।
चाहे वो वन्य जीव हो, या जल निकाय , झील हो या नदी, पशु पक्षी हर एक में परिवर्तन साफ़ दिख रहा है | वो हस्ते हुए कहते है की मानव की क़ैद ने वन्य जीवो को आज़ाद कर दिया है, मेरे अपने घर के आस पास तेंदुआ, मृग (barking deer) कलिराज तीतर (काली मुर्गी) देखे जा सकते है|
सुबह ज्यादा संख्या और कई तरह की चिड़ियों को देखा जा सकता है! माइग्रेटरी बर्ड्स अभी तक यही बसी है जो अब तक उड़ चुकी होती थी जैसे की PLUMBUS RED START , VERDITER FLY CATCHER NEEM TABA, TITS SPECIES|
ऋषिकेश में बहती गंगा हो या नैनीताल की नैनी झील, सब साफ़ हो गयी है, पानी की पारदर्शिता बढ़ गयी है ! नैनी झील तो पानी के नीचे 20 से 30 फ़ीट तक साफ़ दिखाई दे रही है !
बहुत खूबसूरत है ये सब, भले ही इसे पाने के लिए पालनहार को एक घिनोना रूप दिखाना पड़ा मानव प्रजाति को |