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जगन्नाथपुरी में रथयात्रा तो होती है, लेकिन क्यों होती है ? क्या कुछ खास है इस यात्रा में, जानने के लिए खबर को पूरा पढ़े

9 दिन चलने वाले रथयात्रा के उत्सव में भगवान जगन्नाथ यानी कि श्री कृष्ण अपने बड़े भाई बलबद्र और बहन सुभद्रा के  साथ अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाते हैं। यह रथयात्रा हर साल निकली जाती है।

करीब एक सप्ताह तीनों (कृष्ण बड़े भाई बलबद्र और बहन सुभद्रा) यहां रहते हैं फिर अपने मुख्य मंदिर में लौट जाते हैं।

माना यह जाता है कि यह रथयात्रा कई सौ सालों से चली आई है। लेकिन इस साल यहां कोविड 19 के चलते 2 बजे से लॉकडाउन है। सुप्रीम कोर्ट ने यात्रा निकालने के लिए कुछ गाइडलाइंस बनाई थी। जिसके चलते करीब 500 लोग ने ही रथ को खेचा और उन सभी का कोरोना टेस्ट करवाया गया था। करीब 1172 सेवक रथयात्रा में शामिल होंगे।

रथयात्रा क्यों की जाती है

कहा जाता है कि कृष्ण अपने बड़े भाई बलबद्र और बहन सुभद्रा अपनी मौसी के घर जाते हैं। मान्यता यह है कि रथ के खेचने से पुण्य मिलता है

जगन्नाथपुरी की रथयात्रा देश भर में प्रसिद्ध है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार जगन्नाथ पुरी मुक्ति का द्वार है। रथयात्रा में शामिल होने से और रथ खेचने का अवसर मिलना सौभाग्य माना जाता है। जो भी इस पर्व में शामिल होते हैं उन्हें गरबाड़ू कहा जाता है।

रथ की तैयारी कैसे होती है

रथ की तैयारी बसंत पंचमी से शुरू कर दी जाती है खास बात तो है यह है, कि पूरा रथ नीम की लकड़ियों से बनाया जाता है। साथ ही रथ में धातु का प्रयोग भी किया जाता है।

तीन तरह के होते हैं रथ

जगन्नाथ पुरी की रथयात्रा में तीन रथ तैयार किये जाते हैं। सबसे पहले जगन्नाथ जी के बड़े भाई बलराम का रथ निकाला जाता है फिर बहन सुभद्रा का उसके बाद जगन्नाथ का रथ निकलता है।

रथ में क्या खास है

रथ पूरा नीम की लकड़ियों से बना होता है। खास तौर पर 16 पहियों से बनाया जाता है। और 332 लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है। रथ की 45 फीट ऊंचा होता है। बलराम का 44 और बहन सुभद्रा का 43 फीट ऊंचा रथ तैयार किया जाता है।

रथ खेचने से क्या लाभ होता है

माना यह जाता है की जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा में शामिल होने से और रथ खेचने से इसी जन्म में मुक्ति मिल जाती है। उस व्यक्ति को किसी तरह के कोई कष्ट नहीं झेलने पड़ते।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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