आपने फिल्मो में देखा होगा किस प्रकार अंतरिक्ष से एलियन आकर पृथ्वी पर हमला करते है वो जब पृथ्वी के ही देश ही अंतरिक्ष से जंग लड़ेंगे और आपको जानकर हैरानी होगी की भारत भी इस तरफ अपनी स्थिति मज़बूत करने में लगा हुआ है |
भारत ने पिछले ही साल अपने एक सैटेलाइट को मारकर अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया था.
पिछले साल भारत ने अंतरिक्ष में 300 किलोमीटर दूर लो अर्थ ऑर्बिट (एलइओ) सैटेलाइट को मार गिराया. यह एक पूर्व निर्धारित लक्ष्य था और तीन मिनट के भीतर इसे हासिल किया गया था. इसे ‘शक्ति मिशन’ का नाम दिया गया और जिसका संचालन डीआरडीओ ने किया था. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस उपलब्धि से भारत को प्रतिरोधक क्षमता मिल गई है. अगर भारत का सैटेलाइट कोई नष्ट करता है तो भारत भी ऐसा करने में सक्षम है.
हाल ही में अमरीका और ब्रिटेन ने रूस पर अंतरिक्ष में एक हथियार जैसे प्रोजेक्टाइल को टेस्ट करने का आरोप लगाया है. यूएस स्टेट डिपार्टमेंट ने इसे ‘इन ऑर्बिट एंटी सैटेलाइट हथियार’ बताते हुए चिंताजनक बताया है.
इससे पहसे रूस के रक्षा मंत्रालय ने कहा था कि रूस अंतरिक्ष में उपकरण की जांच के लिए नई तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है. अब रूस ने अमरीका और ब्रिटेन पर सच को ‘तोड़ मरोड़कर’ पेश करने का आरोप लगाया है और कहा है कि यह कोई हथियार नहीं है.
अमरीका पहले भी अंतरिक्ष में रूस के सैटेलाइट की गतिविधियों को लेकर सवाल उठा चुका है. हालांकि यह पहली बार है जब ब्रिटेन ने ऐसे आरोप लगाए हैं.
अमरीका के स्पेस कमांड के प्रमुख जनरल जे. रेमंड ने कहा कि इस बात के सबूत हैं कि “रूस ने स्पेस में एंटी सैटेलाइट हथियार का टेस्ट किया है.”
Russia conducted an antisatellite test this month, provoking concern that Moscow is working to improve its capability to attack American space-based systems, the U.S. Space Command said https://t.co/gHT6HozmAt
— The Wall Street Journal (@WSJ) July 24, 2020
उन्होंने आगे कहा, “स्पेस स्थित सिस्टम को विकसित करने और उसको टेस्ट करने की रूस की लगातार कोशिशों का ये एक और सुबूत है. और ये अंतरिक्ष में अमरीका और उसके सहयोगियों के सामनों को ख़तरे में डालने के लिए हथियारों के इस्तेमाल के रूस के सार्वजनिक सैन्य डॉक्ट्रिन के अनुरूप है.”
ब्रिटेन के अंतरिक्ष निदेशालय के प्रमुख एयरवाइस मार्शल हार्वे स्मिथ ने बयान जारी कर कहा, “इस तरह की हरकत अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए ख़तरा पैदा करती है और इससे अंतरिक्ष में मलवा जमा होने का भी ख़तरा रहता है जो कि सैटेलाइट और पूरे अंतरिक्ष सिस्टम को नुक़सान पहुँचा सकता है जिस पर सारी दुनिया निर्भर करती है.”
दुनिया के सिर्फ़ चार देश – रूस, अमरीका, चीन और भारत ने अब तक एंटी सैटेलाइट मिसाइल तकनीक क्षमता का प्रदर्शन किया है.
भारत ने पिछले साल किया था इसका टेस्ट
भारत ने तुलनात्मक रूप से कम ऊंचाई पर उपग्रह को निशाने पर लिया था. यह ऊंचाई 300 किलोमीटर थी जबकि 2007 में चीन ने 800 किलोमीटर से ज़्यादा की ऊंचाई पर अपना एक उपग्रह नष्ट किया था. 300 किलोमीटर की ऊंचाई इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) से नीचे है.
हालांकि नासा प्रमुख का कहना था कि नष्ट किए गए भारतीय उपग्रह के कचरे के 24 टुकड़े आईएसएस के ऊपर चले गए हैं.
जिम ब्राइडेन्स्टाइन ने कहा, ”इससे ख़तरनाक कचरा पैदा हुआ है और ये आईएसएस के भी ऊपर चला गया है. इस तरह की गतिविधि भविष्य के अंतरिक्ष यात्रियों के लिए प्रतिकूल साबित होगी.”
अंतरिक्ष में हथियारों का परीक्षण क्यों?
विज्ञान मामलों के जानकार प्रणव द्विवेदी बताते हैं, “देश सैटेलाइट पर निर्भर होने लगे हैं, देशों की इकोनॉमी कहीं न कहीं सैटेलाइट से जुड़ने लगी है. अगर कोई एक देश किसी दूसरे देश को नुक़सान पहुंचाना चाहता है तो सैटेलाइट को नुक़सान पहुंचा कर वह यह काम कर सकता है, इसकी चर्चा काफ़ी समय से होती आई है.”
प्रणव बताते हैं, “जब इतने सैटेलाइट हों और अर्थव्यवस्था उन पर निर्भर होने लगे, तो आपके पास क्या तरीक़ा है. या तो आप कुछ ऐसा बनाएं कि आपका सैटेलाइट कोई नष्ट नहीं कर सके नहीं तो दूसरे को ये बता दें कि अगर आप हमारी सैटेलाइट से छेड़छाड़ करेंगे, तो हम भी सैटेलाइट पर हमला कर सकते हैं.”
जिन देशों के पास सैटेलाइट गिराने की क्षमता है उनमें से किसी ने भी अभी तक दुश्मन देश के सैटेलाइट पर हमला नहीं किया है. इनका इस्तेमाल अभी तक बस ताक़त के प्रदर्शन के लिए किया गया है.
लेकिन जानकारों का मानना है कि इससे यह नहीं समझ लेना चाहिए कि इनका इस्तेमाल भविष्य में नहीं किया जाएगा.
‘स्पेस वार’ की संभावना से इनकार नहीं
कोई भी ऐसी टेक्नोलॉजी जो इस्तेमाल की जा सकती है, वो शांति और युद्ध दोनों में ही काम आएगी.”अंतरिक्ष की भूमिका अहम होने जा रही है. वैसी ही जैसे हवाई जहाज़ के बनने के बाद उनकी भूमिका पहले और दूसरे विश्व युद्ध में थी.”
“अब जो युद्ध होंगे, उनमें स्पेस की भूमिका सिर्फ़ इसलिए बड़ी होगी क्योंकि इसकी मदद से दूसरे देश को अपाहिज किया जा सकता है.”