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ऐसा रहा आशीष नेहरा का क्रिकेट कॅरियर

आशीष नेहरा का करियर 1998-99 में मोहम्मद अजहरूद्दीन की अगुवाई में एशियाई टेस्ट चैंपियनशिप में शुरुआत के बाद से ही बार-बार रुकता-चलता रहा है. 1999 में मोहम्मद अजहरुद्दीन की कप्‍तानी में नेहरा का कॅरियर शुरू हुआ।

एशियाई टेस्ट चैंपियनशिप में श्रीलंका के खिलाफ उन्‍होंने अपना डेब्‍यू मैच खेला। इसके बाद वो 2 साल के लिए गायब हो गए, फिर सौरव गांगुली उन्हें वापस लेकर आए। यह उस सुनहरे दौर की शुरुआत थी, जब जवागल श्रीनाथ ने नेहरा और बाएं हाथ के एक और यंग गेंदबाज जहीर खान के साथ मिलकर भारत की ओर से अब तक की सर्वश्रेष्ठ तेज गेंदबाजी दिखाई।

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आशीष नेहरा और जहीर बल्लेबाजों को परेशान करते थे, जब श्रीनाथ अपना तजुर्बा दिखाते थे। 2003 का विश्‍वकप नेहरा के लिए ऊंचाई छूने वाला मौका था, जब उन्होंने डर्बन के मैच में इंग्लैंड की बल्लेबाजी को बिखेर दिया था।

गोल्डन पीरियड

फिर वो 2 साल के लिए गायब हो गए, जब तक कि सौरव गांगुली उन्हें वापस नहीं लाए. ये सुनहरे दौर की शुरुआत थी जब जवागल श्रीनाथ ने नेहरा और बाएं हाथ के एक और नौजवान गेंदबाज जहीर खान के साथ मिलकर भारत की ओर से अब तक की सर्वश्रेष्ठ तेज गेंदबाजी दिखाई. नेहरा और जहीर बल्लेबाजों को परेशान करते थे जब श्रीनाथ अपना तजुर्बा दिखाते थे. 2003 का वर्ल्ड कप नेहरा के लिए ऊंचाई छूने वाला मौका था जब उन्होंने डर्बन के मैच में इंग्लैंड की बल्लेबाजी को बिखेर दिया था.

श्रीनाथ के संन्यास लेने के बाद नेहरा ने बागडोर संभाली लेकिन इस दौरान उनकी एड़ी, घुटना, और शायद शरीर के हर हिस्से का ऑपरेशन होता रहा. बार-बार चोट लगने के बाद नेहरा का पूरा ध्यान वनडे इंटरनेशनल क्रिकेट पर चला गया था.

टेस्ट क्रिकेट की कड़ी मेहनत नेहरा को रास नहीं आ रही थी. ये तब दिखा भी जब उन्होंने 2003-04 में पाकिस्तान के ऐतिहासिक दौरे में भारत के लिए अपना आखिरी टेस्ट खेला. जनवरी 2014 के बाद से उन्होंने प्रथम श्रेणी क्रिकेट भी नहीं खेली है. अफसोस की बात है कि ऐसी शालीनता वीरेंद्र सहवाग या जहीर खान के साथ नहीं दिखाई गई.

भारतीय क्रिकेट के सुनहरे दौर के वरिष्ठ खिलाड़ियों और चयनकर्ताओं के बीच संवाद की कमी ने ऐसे दुखद हालात पैदा किए हैं. युवराज सिंह, गौतम गंभीर और हरभजन सिंह आधिकारिक रूप से अभी भी चुनाव के लिए मौजूद हैं, लेकिन सच्चाई यही है कि उनकी वापसी काफी दूर है. 

बार-बार चोट और ऑपरेशन

जवागल श्रीनाथ के संन्यास लेने के बाद नेहरा ने गेंदबजी की बागडोर संभाली, लेकिन इस दौरान उनकी एड़ी, घुटना समेत शरीर के कई हिस्सों का ऑपरेशन होता रहा। बार-बार चोट लगने के बाद नेहरा का पूरा ध्यान वनडे इंटरनेशनल क्रिकेट पर चला गया।

टेस्ट क्रिकेट की कड़ी मेहनत नेहरा को नहीं पसंद आ रही थी। यह तब दिखा भी, जब उन्होंने 2004 में पाकिस्तान के दौरे पर भारत के लिए अपना आखिरी टेस्ट खेला। नेहरा के कॅरियर का दूसरा दौर तब तक चला, जब तक गांगुली भारत के कप्तान रहे, यानी सितंबर 2005 तक। उस समय भारतीय टीम के कोच ग्रेग चैपल के निशाने पर रहने वाले खिलाड़ियों में नेहरा भी एक थे। अगले चार साल तक नेहरा भारतीय क्रिकेट टीम में नहीं दिखे।

आखिरी दम

 2015-16 में, जब भारत में वर्ल्ड कप टी20 का आयोजन हुआ, धोनी उन्हें वापस लाए. उम्मीद थी कि आशीष नेहरा कम समय में ही अपने तजुर्बे का फायदा टीम को दिलाएंगे. नेहरा ने मौके का फायदा उठाया और जिस तरीके से गेंदबाजी हमले की अगुवाई की, वो तारीफ के काबिल था. लेकिन वर्ल्ड कप टी20 में नतीजे भारत की उम्मीद के मुताबिक नहीं रहे. ऐसा महसूस किया गया कि एक बार फिर नेहरा अलग-थलग हो जाएंगे और फिर वो दोबारा चोटिल हो गए..

वर्ल्‍ड कप फाइनल से हुए बाहर

गांगुली के जाने के बाद वो दौर शुरू हुआ, जब लगातार टीम के कप्‍तान बदल रहे थे। उस दौरान संभावित गेंदबाजों में भी नेहरा का नाम शामिल नहीं किया जाता था। अब तक टीम में आरपी सिंह, श्रीसंत, मुनाफ पटेल जैसे यंग गेंदबाज आ चुके थे।

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हालांकि, ये गेंदबाज अपने आपको टीम में पूरी तरह स्थापित नहीं कर पाए थे। इसके बाद कप्‍तानी आई एमएस धोनी के पास। इसी समय धोनी ने चयनकर्ताओं को छोटे फॉर्मेट के लिए नेहरा को टीम में चुनने के लिए राजी कर लिया। इस दौर में उन्होंने जून 2009 से मार्च 2011 तक 48 वनडे मैच खेले। नेहरा ने 32.64 के औसत से 65 विकेट लिए।

यह वो समय था, जब नेहरा सफेद गेंद से गेंदबाजी करने वाले सर्वश्रेष्ठ बॉलर थे। उन्होंने 2011 के विश्व कप सेमीफाइनल में पाकिस्तान को हराने में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई। मगर वो चोटिल हो गए और फाइनल से बाहर रहे। नेहरा ने भारत के लिए उस वर्ल्ड कप सेमीफाइनल के बाद कोई वनडे नहीं खेला।

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